Mulnayak Shri Shri Chandraprabh Swami Bhagwan, white colour in padmasana posture with beautiful parikar.
Shri Manibhadra Veer Dev and Sri Jwalamalini Mata also established in this tirth.
This very ancient and impressive Tirth is 11 km from Borsad on the banks of Mahisagar river. It is in the state of Gujarat.
The ancient name of this tirth is Varikhilyanagari, later the mention of being Valmikinagari is found in the literature. The sons of Shri Adinath Bhagwan, Shri Dravidji and Shri Varikhilyaji, who were Tapas, later attained salvation from Giriraj with pure restraint. In his genealogy, there is a mention of Shri Kukad Muni and 88000 Tapaso in his lineage, who had attained Shiva’s happiness by doing penance on the day of Chaitra Sud Purnima at Kukdiya fort on the banks of Mahisagar river. In this way this tirth is also the third Siddha land of Gujarat.
Ayush of 105 years, worshiper of unbroken 33 years, Lord of Vachansiddhi, Gurumandir of Sanghasthvir Param Pujya Shri Siddhisurishwasarji Maharaj (Bapji M.S.), 6561 kolamvale, Ajod Shri Chintamani Vijaypata’s Mahayantra in the whole world, painted with Ashtagandha on Bhojpatra. In effect.
This shrine has a medicinal garden. In Ahmedabad and Mumbai, medicines are taken from here for anyone who wants to consecrate the Bhagwan in the Jinalaya. This pilgrimage is 100 km from Ahmedabad and 12 KM from Borsad.
Thursdays and Sundays of Jatra in this tirth are mostly important. This is a Shwetamber pagan Jain shrine.
12 KM from Borsad, 30 KM from Anand Railway-Station and 35 KM from Vadodara (Baroda) Railway-Station.
The tirth has the facilities of Dharamshala and Bhojanshala for yatrees.
~~~~~~
मूलनायक श्रीश्री चन्द्रप्रभ स्वामी भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासन मुद्रा में सुन्दर परिकर के साथ।
श्री मणिभद्र वीर देव और श्री ज्वालामालिनी माता की चमत्कारी मूर्ति भी इसी तीर्थ में स्थापित हैं।
यह अत्यंत प्राचीन एवं प्रभावशाली तीर्थ महीसागर नदी के तट पर है, जो कि बोरसद से 11 किमी दूर है।
इस तीर्थ का प्राचीन नाम वरिखिल्यनगरी था, बाद में साहित्य में वाल्मिकीनगरी होने का उल्लेख मिलता है। श्री आदिनाथ भगवान के पुत्र, श्री द्रविड़जी और श्री वारिखिल्यजी, जो तपस थे, बाद में शुद्ध संयम से गिरिराज से मोक्ष प्राप्त किये थें। उनकी वंशावली में श्री कुकड़ मुनि तथा उनके वंश में 88000 तपसो का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने महिसागर नदी के तट पर कुकड़िया दुर्ग पर चैत्र सुद पूर्णिमा के दिन तपस्या करके शिवगति को प्राप्त की थी। इस प्रकार यह तीर्थ गुजरात की तीसरी सिद्ध भूमि भी है।
105 वर्ष के आयुष, 33 वर्ष के अखण्ड उपासक, वचनसिद्धि के स्वामी, संघस्थविर परम पूज्य श्री सिद्धिसूरीश्वसारजी महाराज (बापजी म.सा.) के गुरुमंदिर, 6561 कोलमवले, अजोद श्री चिंतामणि विजयपताका महायंत्र, भोजपत्र पर अष्टगंध से चित्रित इस तीर्थ में मौजुद है |
इस तीर्थस्थल में एक औषधीय उद्यान है। अहमदाबाद और मुंबई में जो भी व्यक्ति जिनालय में भगवान का अभिषेक करना चाहता है, उसके लिए यहीं से औषधियां ली जाती हैं। यह तीर्थस्थल अहमदाबाद से 100 किमी और बोरसद से 12 किमी दूर है।
यह एक श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन तीर्थ है, इस तीर्थ में यात्रा गुरुवार और रविवार अधिकतर महत्वपूर्ण होते हैं।
बोरसद से 12 किमी, आनंद रेलवे-स्टेशन से 30 किमी और वडोदरा (बड़ौदा) रेलवे-स्टेशन से 35 किमी दूर है।
तीर्थ में यात्रियों के लिए धर्मशाला और भोजनशाला की सुविधा है।
Valvod
Gujarat
388530
India
Sorry, no records were found. Please adjust your search criteria and try again.
Sorry, unable to load the Maps API.