Moolanayak Shri Shantinath Bhagwan, white complexioned, in Padmasana posture along with Parikar.
Sevadi Tirtha is very ancient. It is known from the inscriptions engraved in the Jain temple here that it was once a big city and it was called by the names Shwetpati, Shatvatika, Seemapati and Sivwadi. Regarding the antiquity of Sevadi, the V.S. There are inscriptions of 1167 and 1172 which preserve its ancient history in the temple. There are two Jain temples here, in which the temple in the middle of the village is ancient and the other temple is outside the village which is newly built. In the ancient temple, an attractive white-complexioned statue of Lord Shantinath in Padmasana posture is established but V.S. In the article of 1172, there is mention of the original hero Shri Mahavir Bhagwan living here but no. During the renovation in 2014, the statue of Shri Shantinath Bhagwan has been consecrated and the ancient statue has been installed outside. There must have been some reasons behind changing the Moolnayak of the temple, about which it is said that some Jainacharya said that installing the statue of Lord Shantinath in the temple will bring prosperity to the devotees of Sevadi, hence at the time of renovation, the statue of Moolnayak was changed to Lord Mahavir. Lord Shantinath was consecrated in its place. It is said that after that the devotees of Sevadi have become quite prosperous. All the statues of this temple appear to be from the thirteenth century, many of which do not have any writings on them, but the statue of Shri Gunaratnasuri ji of the tradition of Sanderkagachhiya Acharya Shri Yashobhadrasurishwar ji is especially worth seeing because of its artistic quality, on which V.S. Inscribed inscription of 1244. The ancient statues of many gods are installed in the shrines of this ancient temple with Bawan Jinalaya, but the ancient art is clearly visible in the statues of 16 Vidya Devis and the statues of Yaksha Kuber at the entrance of the main chamber of the temple. According to an inscription, there is mention of the installation of the statue of Lord Shantinath in a gokhala of this temple by Yashodev, the commander of Chauhan king Katukraj. Sevadi was once a prosperous town, which can also be estimated from the fact that many archaeological materials are found in excavations around the present village, some such ancient statues have been installed outside the courtyard at the back of the Jain temple.
But a rare statue of Saraswati is also very attractive. But the statue of Gajalakshmi in Gambhare is unique in itself. It is said that there were once a hundred stepwells in Sevadi Nagar, even today a huge and artistic stepwell named Jetal exists here. An ancient copper plate related to Sevadi Tirtha mentions the existence of a temple of Lord Parshvanath in Anil Vihar of Samipati. As part of the search for this temple, ruins of the ancient fort Atergarh have been found in the forest, some distance away from Sevadi, excavation work should be done here. So evidence of the ancient history of Sevadi may be available. Outside the village to the west, near an ancient stepwell, there is another Jain temple which is newly built. In this, the idol of Lord Vasupujya is the main protagonist. The prestige of this temple is no. In 1982, Yeti was done by Prataparatna ji. It is said that Yeti ji was very miraculous. In his sub-shelter, many instruments and various activities of God were depicted with golden painting. That ancient sub-shelter is now destroyed. In the new temple, apart from the creations of Shatrunjay and Girnar, there are four-faced statues seated in a Samvatsarana. There is proper arrangement of Dharamshala and Ayambalshala for the stay of pilgrims in Sevadi.
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मूलनायक श्री शांतिनाथ भगवान, श्वेतवर्ण, परिकर सहित पद्मासन मुद्रा में।
सेवाड़ी तीर्थ अतिप्राचीन है। यहां जैन मंदिर में उत्कीर्ण लेखों से ज्ञात होता है कि यह कभी बड़ा नगर था और उसको श्वेतपाटी, शतवाटिका, सीमापाटी व सिव्वाड़ी के नाम से पुकारा जाता रहा है। सेवाड़ी की प्राचीनता के संबंध में यहां के वि.सं. ११६७ व ११७२ के लेख हैं जो मंदिर में इसके पुरातन इतिहास को संजोये हुए हैं। यहां दो जैन मंदिर है जिसमें गांव के बीच वाला मंदिर प्राचीन है तथा दूसरा मंदिर गांव के बाहर है जो नया बना हुआ है। प्राचीन मंदिर में शान्तिनाथ भगवान की पद्मासनस्थ श्वेतवर्ण की आकर्षक प्रतिमा प्रतिष्ठित है लेकिन वि.सं. ११७२ के लेख में यहां मूलनायक श्री महावीर भगवान रहने के उल्लेख है लेकिन सं. २०१४ में जीर्णोद्धार के समय श्री शान्तिनाथ भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठित की गई है और प्राचीन प्रतिमा को बाहर स्थापित किया गया है। मंदिर के मूलनायक को बदलने के पीछे भी कुछ कारण अवश्य रहे होंगे जिसके बारे में कहा जाता है कि किसी जैनाचार्य ने कहा कि यहां मंदिर में शान्तिनाथ भगवान की प्रतिमा स्थापित करने से सेवाड़ी के श्रावको में समृद्धी आयेगी इसलिए जीर्णोद्धार के समय मूलनायक की प्रतिमा भगवान महावीर के स्थान पर शान्तिनाथ भगवान की प्रतिष्ठा करवाई गई। कहते हैं उसके बाद सेवाड़ी के श्रावक काफी समृद्ध हुए हैं। इस मंदिर की सभी प्रतिमाएं तेरहवीं शताब्दी की प्रतीत होती है जिनमें से अनेक पर कोई लेख नहीं है परन्तु संडेरकगच्छीय आचार्य श्री यशोभद्रसूरीश्वर जी की परम्परा के श्री गुणरत्नसूरी जी की प्रतिमा कलापूर्ण होने के कारण विशेष दर्शनीय है जिसपर वि.सं. १२४४ का लेख उत्कीर्ण है। बावन जिनालय वाले इस प्राचीन मंदिर की देवकुलिकाओं में अनेक देवताओ की प्राचीन मूर्तियां स्थापित है लेकिन मंदिर के मूल गंभारे के द्वार पर १६ विद्यादेवियों की मूर्तियां और यक्ष कुबेर की मूर्तियों में प्राचीन कला के स्पष्ट दर्शन होते हैं। एक शिलालेख के अनुसार चौहान राजा कटुकराज के सेनापति यशोदेव द्वारा इस जिनालय के एक गोखले में शान्तिनाथ भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाये जाने का उल्लेख है। सेवाड़ी एक जमाने में समृद्धशाली नगर था जिसका अनुमान इससे भी लगाया जा सकता है कि वर्तमान गांव के आसपास अनेक पुरातत्व सामग्री खुदाई में मिलती रहती है, ऐसी की कुछ प्राचीन प्रतिमाएं जैन मंदिर में पीछे की ओर देरियों के बाहर लगाई गई है।
लेकिन एक सरस्वति की दुर्लभ प्रतिमा भी बड़ी आकर्षक है। परन्तु गंभारे में गजलक्ष्मी की प्रतिमा अपने आपमें अनुठी है। कहते हैं कि सेवाड़ी नगर में कभी एक सौ बावड़यां थी आज भी यहां जेतल नामकी विशाल एवं कलापूर्ण बावड़ी विद्यमान है। सेवाड़ी तीर्थ से संबंधित एक प्राचीन ताम्रपत्र में समीपाटी के अनिल विहार में भगवान पार्श्वनाथ के मंदिर का होना अंकित है इस मंदिर की खोज के अन्तर्गत सेवाड़ी से कुछ दूर जंगल में यहां के प्राचीन दुर्ग अटेरगढ़ के भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं, यहां उत्खनन का कार्य करवाया जाय तो सेवाड़ी के प्रचीन इतिहास के साक्ष्य उपलब्ध हो सकते हैं। गांव के बाहर पश्चिम में एक प्राचीन बावड़ी के पास दूसरा जैन मंदिर है जो नया ही बना हुआ है। इसमें वासुपूज्य भगवान की प्रतिमा मूलनायक है। इस मंदिर की प्रतिष्ठा सं. १९८२ में यति प्रतापरत्न जी द्वारा की गई थी। कहते हैं कि यति जी बड़े चमत्कारी थे इनके उपाश्रय में सुनहरी चित्रकारी से अनेक यंत्र तथा भगवान की विभिन्न लीलीएं चित्रित थी वह प्राचीन उपाश्रय अब ध्वंस हो गया है। नये मंदिर में शत्रुन्जय व गिरनार की रचना के अतिरिक्त एक संवतसरण में चतुर्मुख प्रतिमाएं विराजमान है। सेवाड़ी में यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशाला व आयम्बलशाला की सुव्यवस्था है। सेवाड़ी पहुंचने के लिए फालना रेल्वे स्टेशन से बाली होते हुए पहुंचा जा सकता है। फालना से सेवाड़ी की दूरी २० किलोमीटर है।
कैसे पहुँचें :
सेवारी गाँव राजस्थान के पाली जिले की बाली तहसील में स्थित है। यह बाली से 12 किमी और पाली से 87 किमी दूर है।
ट्रेन: फालना रेलवे स्टेशन
वायु मार्ग: उदयपुर हवाई अड्डा |
Sewari
Rajasthan
306707
India
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